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Wednesday, June 1, 2011

मुझे उत्मदप्रलाद हुआ है...एस फैक्टर की जरूरत है...

कल रात में एक्स फैक्टर देख रहा था. वही प्रोग्राम जिसमें पूरे यूनिवर्स (ऐसा मैं नहीं चैनल वाले दावा कर रहे है )के सबसे टैलेंटेंड सिंगर-एक्टर-डांसर-फिलॉसफर-स्ट्रगलर-एंकर-राइटर-फाइटर, अरे छोडि़ए सारे टर, गर टाइप एडजेंक्टिव लगा लें वैसे हुनरमंद बंदे की तलाश हो रही है. सारी क्वालिटी एक साथ मिलती है तब जाकर सामने आता है एक्स फैक्टर.

कसम रियलिटी शो बनाने वाले की, क्या धांसू आयडिया है बॉस. अब बात मुद्दे की. उसी प्रोग्राम में कल एक उजड़े चमन-बिखरे-वतन टाइप कंटेसटेंट सामने आता है...जजेज उससे पूछते हैं-आप क्या करते हैं?

जवाब-सर,मैं ऑटो चलाता हूं.

कैमरा श्रेया घोषाल, संजय लीला भंसाली और सोनू निगम के आंखों में घुस जाता है..टप-टप बरसा पानी की ट्यून पर तीनों के आंखों से आंसू (अगर सही वाले हैं तो ).

मैं हैरान-परेशान. वह ऑटो वाला है और शो में आ गया तो इसमें रुदाली बनने की जरूरत क्या?

फिर मैंने अपनी समझ पर डाउट किया और गुणी लोगों के इमोशन को सम्मान देते हुए देखना जारी रखा.

वह गाता रहा, तुम फूलों की रानी, मैं बहारों की मालिक...

और जजेज रोते रहे..गाना खत्म..रोना जारी..सन्नाटा..एकदम जय के मरने के बाद जैसा शोले में होता है वैसा सन्नाटा. सुना कि कई घरों में कई औरतें भी रोईं.

जाहिर है इसके बाद तो उसका सेलेक्शन तो होना ही था. एंट्री के साथ टीआरपी ऑन टॉप. एक्स से पहले उसका एस (सिपैंथी) फैक्टर काम कर गया. उसकी तो चल पड़ी. फेसबुक पर उसके सपोर्ट में फैंस क्लब खुल गये. ट्विट होने लगे. अमूल मैचो मैन की सारी खूबियां उसमें दिखने लगी. वह सेलेब क्लब में धड़ ररर से चला गया अपने ऑटो से.

मैंने अपने आपको कोसा-हाय रब्बा..मैंने ऑटो क्यूं नहीं चलाई??

पिछले दिनों इसी तरह रोडिज में एक मैनेजमेंट स्टूडेंट ने महान दि ग्रेट रघु-राजीव कंपनी को सही शब्दों में "वो" बना डाला. उसने एस-फैक्टर फेंका कि वह एक होटल में स्वीपर टाइप काम करता है..बस यही खूबी उसे रोडिज के रास्ते में सरपट ले उड़ी. यह तो शुक्र मनाएं कि मुझ जैसे कुछ फ्रस्टु टाइप लोगों की डीप रूटेड अनुसंधान एकदम इंस्पेक्टर दया की तरह, जिसने उसका पूरा कच्चा चि_ा निकाल दिया कि वह तो स्वीपर क्या खुद कई स्वीपर को पगार देने की औकात रखता है.

लेकिन बात न तो ऑटो की है न ही बेचारगी की मेरे दोस्त. यह जो एस फैक्टर है ना वह तो एक आर्ट है.

याद आने लगे कॉलेज के फ्स्र्ट ईयर के दिन.सुबह-सुबह सभी उंगलियों में बैंड एड-तभी इसका चलन तेजी से हुआ था, लगाकर पहुंच जाते कुछ लडक़े और फिर सारी लड़कियां भिन्न्न्न्न्न्न्न कर वहां मंडराने पहुंच जाती. अरे मेरा हलवा, मेरे खीर..मेरे दोस्सा मेरे जानू मेरे ए मेरे बी कैसे हो गया..दर्द कर रहा है ना?? लो..और दूर खड़े हम लोग सोचते-बेटा जरा निकल-उंगली की वह हालत करूंगा कि बैंड एड तो क्या पूरे अस्पताल का प्लास्टर भी ठीक नहीं कर पाएगा. ये अलग बात कि दिल के अरमान हमेशा दिल में ही रह गए.

लेकिन धीरे-धीरे मोटे अक्ल में पतली बात देर ये गई-यह एस फैक्टर बहुत ही धांसू फैक्टर है. यह राजीव गांधी को इंडिसन पॉलिटिकल हिस्ट्री का सबसे बड़ा मैनडेट दिलाता है, रणवीर कपूर को एक के बाद एक गर्ल फ्रेंड दिलाता है, मेंटली डिस्टर्ब कोई मिल गया को हगिज जिंटा और गुजारिश को कांस राय बच्च्न दिलाता है, रियलिटी शो में बेशुमार एसएमएस मिलते हैं...शाइनी आहुजा को फिल्में दिलाता है, वीना मलिक को अपनी माशाअल्लाह अदा दिखाने का परमिट देता है, राहुल महाजन को सोलह हजार लड़कियों के बीच अपनी दुल्हन चुनने का मौका मिलता है, विनोद कांबली को अपने यार सचिन तेंदुलकर पर आरोप लगाने का साहस देता है...लिस्ट लंबी है..भावनाओं को समझिए,अधिक मिसाल की और क्या जरूरत है.

अंत में एक बात- मेरा ब्लॉग बहुत ही दीन-हीन टाइप है. कई दिन इसने बिना शब्द के खुले आसमान में गुजारे हैं.इसे आपके सहारे की जरूरत है. जरा इसके लिए आप कुछ आंसू बहा लें तो मैं अपना कुछ इंतजाम कर लूं. एस फैक्टर के इंतजार में.




Kuch non-sense jaisa

A line written on the gate of graveyard.........

This place is full of those people..who thought that the world cannot run without them...........

Senti-मेंटल

मैं तो रह गई शबरी की शबरी..तुम मेरे जूठी बेरी खाकर ऊंचे हो गये राम..


Monday, May 30, 2011

BHAG-DK-BOSE-KI KASAM...I WILL WRITE TOO...


आम जनता की उद्दंड, प्रचंड और घनघोर मांग को देखते हुए अंतत: मैंने भी ब्लॉग की दुनिया में औकात के हिसाब से 140 गज जमीन खरीदने का डिसीजन ले लिया है. ब्रांडिंग (सेल्फ वर्ड को साइलेंट कर दिया गया है) के लिए आयडियल मंच है ब्लॉगिंग. कबीर आज होते तो लिखते-कबीरा खड़ा गुगलवा में...खैर एक डायरेक्ट सा असेंसर्ड एनाउंसमेंट.

सबों को भाग-डी- के-बोस की कसम अगर इस मुल्क में कमाल राशिद खान को फिल्में बनाने का, शरद पवार को एंटी करप्शन कमिटी को हेड करने का, सोनम कपूर को कांस फिल्म फेस्टिवल में रेड कार्पेट पर "ओह-आह-आउच " मार्का कैट वॉक करने का, अमर सिंह को बिपाशा बसु से "बिटविन दि लेग्स" उप्स बिटविन दि लाइन्स बात करने का, मल्लिका शेरावत को ओबामा के साथ लंच करने का हक है तो मुझे भी पूरा-पूरा हक है जो मन में आए उसे लिख देने का.

कोई ताकत मुझे भी यहां भों-भों करने से रोक नहीं सकती. लेकिन दोस्तों आपसे एक सेंटी-गुजारिश जब भी आपको कहीं भों-भों करता हुआ कोई दिख जाऐ या सुन जाए तो उनमें मेरा अक्सदेख कर पल भर याद कर लीजिएगा. और 140 वर्ड की छोटी सी दुनिया में दो मिनट का वक्त निकाल लेंगे. भले पोस्ट पढ़े ना पढ़े-गारंटी देता हूं कि पढऩे लायक नहीं के बराबर होगा ताकि आपका समय बर्बाद न हो, विजिट जरूर कर लें ताकि टीआरपी बढ़ती रहे (फिर समझते ही हैं कि टीआरपी वाले को दुनिया कब अंत होगी यह भी बताने-डराने का हक मिल जाता है).

अंत में एक स्पेशल ऑफर-मेरे ब्लॉग पर कमेंट करने वाले पहले 50 दोस्तों को मेरी ओर से फ्री में थैंक्स मिलेगा. हां, बिल्कुल फ्री में. बिना मार्का वाला.

और अगर आपमें किसी को यह ऑफर छोटा और बेकार सा लग रहा हो तो बांये दिल पर हाथ रखकर याद करें कि आखिर में कब आपसे किसी ने बिना किसी हित के कोई अच्छी बात और दो वर्ड मीठे बोले होंगे...और जिन्हें वास्तव में याद आ जाएं कि किसी ने कहा है तो उन खुशकिस्मत दोस्त को साधुवाद...आपने जिंदगी जी ली..आप लाइफ इज ब्यूटीफुल कहने के हकदार हैं.

kuch non-sense jaisa..

AIDS( Appraisal and deficeiency syndrome) suffering

सारे दोस्तों के लिए एक टिप्स-

संयम नहीं रखें..मल्टीपार्टनर (बहुनौकरी )में भरोसा रखें. रोग के लक्षण कभी नजर नहीं आएंगे.

Senti-Mental

बड़े शहरों में अक्सर ख्वाब छोटे टूट जाते हैं,

बड़े ख्वाबों की खातिर छोटे शहर छूट जाते हैं